नवोदय विद्यालयों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभाओं को निखार कर उन्हें मुख्यधारा की स्पर्धा में लाने के लिये हुई थी। मानव संसाधन मंत्रालय के अधीन स्वायत्त संस्था नवोदय विद्यालय समिति के तत्वावधान में शुरू हुई इस अभिनव योजना के तहत लाखों वंचित व गरीब समाज के प्रतिभाशाली बच्चों को गरीबी की दलदल से बाहर निकाला गया। इस अभिनव योजना को शिक्षा जगत में सफल प्रयोग के रूप में मान्यता मिली। देश भर में 635 स्कूलों में 2.8 लाख बच्चे अपना भविष्य निखार रहे हैं। इन स्कूलों में हाई स्कूल में परीक्षाफल 99 और बारहवीं में 95 फीसदी रहा जो एक रिकॉर्ड है। यह परीक्षा परिणाम निजी स्कूलों और सीबीएसई के राष्ट्रीय स्तर से बेहतर है। नवोदय विद्यालयों में 75 फीसदी सीटें ग्रामीण बच्चों के लिये होती हैं। विद्यालयों की लोकप्रियता का अंदाजा देखिये कि जितने प्रतियोगी इन स्कूलों के लिये परीक्षा देते हैं, उनमें से तीन प्रतिशत बच्चे ही परीक्षा पास कर पाते हैं। पिछले दिनों सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच 49 बच्चों ने खुदकुशी की। ?ये आकंड़ा चौंकाता है। चिंता की बात यह है कि मरने वाले छात्रों में आधे दलित व आदिवासी हैं। वर्ष 2017 में 14 बच्चों ने आत्महत्या की। वहीं सामान्य व पिछड़े वर्ग के बारह-बारह बच्चों ने आत्महत्याएं कीं। आत्महत्या करने वालों में लड़कियों के मुकाबले लड़कों की संख्या ज्यादा थी। हाशिये के समाज की प्रतिभाओं को निखारने वाली इस संस्था में आत्महत्या का यह आंकड़ा विचलित करने वाला है। कारणों की पड़ताल करें तो वे शेष देश जैसे ही हैं। जिनमें घर की समस्या, एकतरफा प्यार, शारीरिक दंड, टीचरों द्वारा अपमान, पढ़ाई का दबाव, अवसाद और दोस्तों के बीच लड़ाई होना बताया जाता है जो संस्था के नीति-नियंताओं को बच्चों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत बताता है। निसंदेह छात्रावास में रहने वाले बच्चों की मनोदशा को समझने के लिये प्रशिक्षित व्यक्ति की जरूरत होती है, जिसके चलते विद्यालयों में काउंसलर नियुक्त करने की मांग?उठी है। दरअसल, इन विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों के व्यवहार में माइक्रो स्तरीय बदलाव को महसूस करने वाले संवेदनशील अध्यापकों की कमी खलती है। वास्तव में ये शिक्षक पढ़ाने के अलावा खानपान, रहवास, चिकित्सा आदि का दायित्व भी निभाते हैं। ध्यान रहे कि इन स्कूलों में दाखिला छठी कक्षा से शुरू होता है और छात्र यहां बारहवीं तक अध्ययन करते हैंएक अध्ययन के मुताबिक ज्यादातर बच्चे उस समय ?आत्महत्या करते हैं जब परीक्षाएं होती हैं या जब वे गर्मी की छुट्टियां बिताने के बाद विद्यालय वापस आते हैं। जिसके चलते निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बच्चे कहीं न कहीं होम सिकनेस भी महसूस करते हैं। इनकी उम्र 9 साल से 19 साल तक की होती है, जिसमें इन्हें अपने मांबाप व भाई-बहनों से अलग रहना भी अखरता है। फिर भी उन कारणों की गंभीर पड़ताल जरूरी है, जिसके चलते ये छात्र-छात्राएं ?आत्महत्या करते हैं। जाहिरा बात है कि उनके एहसासों को गंभीरता से नहीं लिया जाता और उन्हें अपनी समस्या का समाधान नहीं मिलता जो कालांतर अवसाद का कारण बनता है।
ये उम्मीद न टूटे